भारतीय खनन उद्योग पर ICRA की रिसर्च

भारतीय खनन उद्योग पर ICRA की रिसर्च: खनन उपकर का प्रभाव

ICRA ने हाल ही में भारतीय खनन उद्योग पर एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें खनन उपकर (सेस) के संभावित प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है। यह रिपोर्ट उद्योग में काम कर रहे प्रमुख और द्वितीयक इस्पात उत्पादकों पर पड़ने वाले असर को विश्लेषित करती है।

खनन उपकर से लागत में वृद्धि और परिचालन मार्जिन पर दबाव

ICRA की रिपोर्ट के अनुसार, खनन उपकर से भारतीय खनन उद्योग में इनपुट लागत में वृद्धि होगी, जिससे परिचालन मार्जिन (ऑपरेटिंग मार्जिन) पर दबाव पड़ सकता है। यह विशेष रूप से इस्पात उत्पादकों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि इससे उनके मुनाफे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

द्वितीयक इस्पात उत्पादकों पर अधिक प्रभाव

रिपोर्ट में बताया गया है कि द्वितीयक इस्पात उत्पादकों पर इस खनन उपकर का प्रभाव अधिक होगा। इनके मार्जिन में 80 से 250 आधार अंक (बीपीएस) की गिरावट की संभावना है। दूसरी ओर, प्राथमिक इस्पात उत्पादकों के मार्जिन में 60 से 80 बीपीएस की गिरावट की उम्मीद है।

ओडिशा में लौह अयस्क की लागत में वृद्धि

ICRA का अनुमान है कि खनन उपकर से ओडिशा में लौह अयस्क की लैंडेड कॉस्ट में 11% की वृद्धि हो सकती है। इससे इस्पात उत्पादन की लागत में भी वृद्धि होगी, जिसका असर उद्योग की कुल लागत पर पड़ सकता है।

क्रूड स्टील की इनपुट लागत में वृद्धि

रिपोर्ट के अनुसार, खनन उपकर के लागू होने से क्रूड स्टील की इनपुट लागत में प्रति टन लगभग 1,200 रुपये की वृद्धि हो सकती है। यह वृद्धि इस्पात उत्पादकों के लिए अतिरिक्त वित्तीय बोझ साबित हो सकती है, जिससे उनके मार्जिन पर और अधिक दबाव पड़ेगा।

निष्कर्ष

ICRA की इस रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि भारतीय खनन उद्योग और इस्पात उत्पादकों को खनन उपकर से महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। उद्योग को अपनी लागत संरचना को फिर से आकलन करने की आवश्यकता होगी ताकि वे इस अतिरिक्त लागत का प्रभाव कुशलतापूर्वक प्रबंधित कर सकें।

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